20 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जाएगी दीपावली — हस्त नक्षत्र और वेध्रति योग से बना अद्भुत शुभ संयोग; हस्त नक्षत्र, बृहस्पति का कर्क राशि में होना लाएगा घर में लक्ष्मी कृपा

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

इस साल दीपावली का महापर्व 20 अक्टूबर, सोमवार को धूमधाम से मनाया जाएगा। इस बार का दीपोत्सव ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद शुभ माना जा रहा है, क्योंकि इस दिन हस्त नक्षत्र, वेध्रति योग, नाग करण, और कन्या राशि में चंद्रमा की स्थिति रहेगी। इन संयोगों के कारण मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की आराधना का फल कई गुना बढ़ जाएगा।

रूप चौदस से होगी शुरुआत, प्रदोषकाल में दीपावली पूजन

20 अक्टूबर की सुबह रूप चौदस या नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा, जबकि शाम को प्रदोषकाल में मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर की पूजा की जाएगी।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, प्रदोषकाल में अमावस्या तिथि का संयोग दीपावली पूजन के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस वर्ष ऐसा ही शुभ अवसर बन रहा है।

ग्रह नक्षत्रों का अद्भुत संयोग

ज्योतिषीय गणना के अनुसार, सोमवार को हस्त नक्षत्र रहेगा, जिसे विशेष रूप से मंगलकारी माना जाता है। इस दिन बुध का त्रिकोण योग और मंगल का केंद्र योग बन रहा है। यह संयोग भूमि, भवन, संपत्ति, निवेश और नई योजनाओं की शुरुआत के लिए बेहद अनुकूल रहेगा।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला बताते हैं कि “इस वर्ष दीपावली का दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से पवित्र है, बल्कि आर्थिक और पारिवारिक समृद्धि के लिए भी शुभ संकेत दे रहा है।”

पंचांग के अनुसार, 20 अक्टूबर को दोपहर 3:45 बजे तक चतुर्दशी तिथि रहेगी, जिसके बाद अमावस्या तिथि प्रारंभ हो जाएगी। धर्मशास्त्रों के अनुसार, प्रदोषकाल में अमावस्या का होना दीपावली पूजन का शास्त्रोक्त समय है।
इस बार पूजा वृषभ, सिंह और वृश्चिक जैसे स्थिर लग्नों में की जा सकती है। ये लग्न लक्ष्मीपूजन के लिए सर्वोत्तम माने गए हैं।

इस दीपावली में देवगुरु बृहस्पति कर्क राशि में अतिचारी रहेंगे, जो कि उनकी उच्च अवस्था मानी जाती है। यह स्थिति धन वृद्धि, पारिवारिक सुख और नए अवसरों का संकेत दे रही है। पं. डब्बावाला के अनुसार, “बृहस्पति का कर्क में होना घर में सकारात्मक ऊर्जा और लक्ष्मी कृपा के द्वार खोलता है।”

भारतीय ज्योतिष में पंचांग अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें पाँच तत्व होते हैं — वार, तिथि, योग, नक्षत्र और करण। पंचांग की गणना दो प्रमुख पद्धतियों से की जाती है — ग्रह लाघविय पद्धति और चित्रा केतकी पद्धति। इन दोनों में गणना की विधि में थोड़ा अंतर होता है, जिससे तिथियों में भी अंतर दिखाई देता है। क्योंकि सूर्य के उदय का समय हर शहर में अलग होता है, इसलिए अलग-अलग पंचांगों में तिथि का फर्क स्वाभाविक है। यही कारण है कि कुछ जगह दीपावली 20 को तो कुछ स्थानों पर 21 अक्टूबर को मनाई जाएगी, परंतु शास्त्रानुसार 20 अक्टूबर की शाम प्रदोषकाल में पूजा सर्वोत्तम मानी गई है।

पांच दिन का दिवाली पर्व – समृद्धि और सौभाग्य का उत्सव

दीपावली केवल एक दिन का नहीं, बल्कि पांच दिनों तक चलने वाला प्रकाश पर्व है, जो यम, धन्वंतरि, लक्ष्मी, गोवर्धन और यम द्वितीया जैसे महत्वपूर्ण पर्वों से जुड़ा है।

तिथि पर्व का नाम विशेषता
18 अक्टूबर धनतेरस इसी दिन से दीपोत्सव की शुरुआत होती है। शाम को यम के निमित्त दीपदान किया जाता है।
19 अक्टूबर धन्वंतरि जयंती अभिजीत मुहूर्त में भगवान धन्वंतरि की पूजा कर आरोग्य की कामना की जाती है।
20 अक्टूबर (सुबह) रूप चौदस (नरक चतुर्दशी) इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर रूप सौंदर्य और आरोग्य की कामना की जाती है।
20 अक्टूबर (शाम) दीपावली प्रदोषकाल में लक्ष्मी-गणेश पूजन और दीपदान का पर्व।
22 अक्टूबर गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की स्मृति में अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है।
23 अक्टूबर भाई दूज (यम द्वितीया) इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक कर दीर्घायु की कामना करती हैं।

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